TET Teachers News Today: शिक्षक बनने की राह देख रहे लाखों उम्मीदवारों और पहले से कार्यरत शिक्षकों के लिए सुप्रीम कोर्ट से जुड़ी एक अहम खबर सामने आई है। देश की सर्वोच्च अदालत ने शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) की अनिवार्यता से संबंधित मामले को अब बड़ी पीठ के पास भेज दिया है। यह फैसला शिक्षा प्रणाली और शिक्षक भर्ती दोनों के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
टीईटी क्या है और क्यों है यह जरूरी?
टीईटी यानी Teacher Eligibility Test एक ऐसी परीक्षा है जिसे पास करना किसी भी उम्मीदवार के लिए जरूरी होता है जो सरकारी या मान्यता प्राप्त स्कूलों में कक्षा 1 से 8 तक पढ़ाना चाहता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षक न केवल योग्य हों, बल्कि बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने में सक्षम भी हों। केंद्र सरकार का मानना है कि टीईटी जैसी परीक्षा से शिक्षा के स्तर में एकरूपता बनी रहती है और देशभर में शिक्षण की गुणवत्ता बेहतर होती है।
राज्यों में टीईटी नियमों पर विवाद
पिछले कुछ वर्षों में कई राज्यों में टीईटी की अनिवार्यता को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में पहले से कार्यरत शिक्षकों ने यह दलील दी है कि उन्हें फिर से टीईटी पास करने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए। उनका कहना है कि वर्षों का अनुभव उनकी योग्यता को साबित करने के लिए पर्याप्त है। दूसरी ओर, कुछ राज्यों का तर्क है कि शिक्षा की गुणवत्ता को एक समान बनाए रखने के लिए टीईटी को आवश्यक रखना जरूरी है।
केंद्र सरकार की दलील
केंद्र सरकार का पक्ष साफ है — शिक्षक भर्ती और योग्यता के मानदंड पूरे देश में समान होने चाहिए। सरकार का कहना है कि यदि हर राज्य अपने अलग नियम बनाएगा, तो शिक्षा के स्तर में असमानता आ जाएगी, जिससे बच्चों के भविष्य पर बुरा असर पड़ सकता है। टीईटी परीक्षा को इसीलिए लागू किया गया ताकि स्कूलों में सिर्फ प्रशिक्षित और योग्य शिक्षक ही नियुक्त हों।
सुप्रीम कोर्ट की बड़ी पीठ करेगी सुनवाई
अब सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे मामले को बड़ी पीठ के हवाले कर दिया है। यह पीठ यह तय करेगी कि क्या टीईटी को पूरे देश में अनिवार्य बनाया जाए या राज्यों को इसमें छूट दी जाए। यह फैसला लाखों शिक्षकों और अभ्यर्थियों के भविष्य को प्रभावित करेगा। अगर कोर्ट टीईटी को अनिवार्य बनाए रखती है, तो शिक्षक भर्ती की प्रक्रिया और सख्त हो जाएगी। वहीं, अगर राज्यों को स्वतंत्रता दी जाती है, तो वे अपने-अपने नियम तय कर सकेंगे।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला देश की शिक्षा व्यवस्था की दिशा तय करेगा। एक ओर जहां केंद्र सरकार शिक्षा की गुणवत्ता पर जोर दे रही है, वहीं शिक्षकों का मानना है कि अनुभव को भी समान महत्व दिया जाना चाहिए। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि कोर्ट का अंतिम फैसला क्या रूप लेता है और इसका प्रभाव देशभर की शिक्षण प्रणाली पर कैसा पड़ता है।